BA Semester-5 Paper-1 Psychology - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2789
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 2

गर्भकालीन विकास

(Prenatal Development)

प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी है ? समझाइए ।

अथवा
प्रसव के पूर्व गर्भावस्था की प्रत्येक अवस्था में भ्रूण के विकास का वर्णन कीजिये।
अथवा
पूर्व प्रसव काल की विभिन्न अवस्थाओं को नामांकित कीजिए तथा गर्भकालीन विकास के प्रमुख निर्धारक तत्वों का वर्णन कीजिए।

उत्तर -

गर्भधारण के तुरन्त बाद शारीरिक विकास प्रारम्भ हो जाता है। भिन्न-भिन्न विकास - अवस्थाओं में शारीरिक विकास भिन्न-भिन्न गति से चलता है। अन्य विकास अवस्थाओं की अपेक्षा गर्भकालीन अवस्था से शारीरिक विकास की गति अपेक्षाकृत अधिक तीव्र होती है। गर्भकालीन अवस्था 280 दिन की होती है। जीववैज्ञानिक इस अवस्था में 24 दिन के दस चन्द्र महीन मानते हैं। बोलचाल की भाषा में इस अवधि में 9 महीने कहे जाते हैं। इस अवस्था के अधिकांश परिवर्तन शारीरिक होते हैं। कारमाइकेल (L. Carmichael, 1954) के अनुसार, गर्भकालीन अवस्था कम से कम 180 दिन तथा अधिक से अधिक 334 दिन की हो सकती है। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से इस अवधि के निम्न तीन उपभाग किये गये हैं-

1. डिम्ब अवस्था (The Period of the Ovum) गर्भधारण से 2 सप्ताह तक

यह अवस्था बीजावस्था (Germinal Period) भी कहलाती है, जिसकी अवधि गर्भधारण से दो सप्ताह तक होती है। इस अवस्था के प्राणी, जो अण्डे की शक्ल का होता है, युक्ता (Zygote) कहलाता है। इसका आकार पिन की हेड के बराबर होता है। इसके आकार में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आता है; क्योंकि इसे माँ से कोई आहार प्राप्त नहीं होता है। आवेग में पाया जाने वाला योक (Yolk) नामक पदार्थ ही इसका आहार होता है। कोष्ठ-विभाजन (Cell Division) की क्रिया युक्ता (Zygote) के अन्दर चलती रहती है परन्तु युक्ता (Zygote) में बाहर से कोई परिवर्तन नहीं दिखाई देता है। यह गर्भधारण के बाद गर्भाशय में लगभग एक सप्ताह तक तैरता रहता है। लगभग 10 दिन में ही यह गर्भाशय की दीवार से चिपक जाता है और आहार के लिए यह माँ के शरीर से इस प्रकार सम्बन्धित हो जाता है, परन्तु माँ के गर्भाशय की दीवार से यह उस समय चिपक नहीं पाता हैं जब उसकी थॉयराइड और पिट्यूटरी ग्रन्थियाँ अनुपयुक्त ढंग से कार्य करती हैं। इस अवस्था में कुछ ही दिनों में योक पदार्थ, युक्ता (Zygote) से समाप्त हो जाता है और युक्ता (Zygote) मृत हो जाता है।

2. भ्रूण अवस्था (The Period of the Embryo) (2 सप्ताह 2 महीने )

इस अवस्था की अवधि दो सप्ताह से दो माह तक होती है। इस अवस्था में भ्रूण में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। इस अवस्था के अन्त तक भ्रूण की आकृति मानव के शक्ल की हो जाती है और शरीर के मुख्य-मुख्य अंगों का निर्माण हो जाता है। भ्रूण की संरचना को यदि देखा जाय तो इसका निर्माण तीन पर्तों से होता हुआ दिखाई देता है - प्रथम पर्त बहिः स्तर (Ectoderm) कहलाती है जिससे त्वचा, दाँत, नाखून, बाल और नाड़ीमण्डल आदि का विकास होता है। नाड़ीमण्डल में मस्तिष्क का विकास तीव्र गति से होता हैं द्वितीय पर्त मध्य स्तर (Mesoderm) कहलाती है जिससे त्वचा का भीतरी भाग और माँसपेशियों का निर्माण होता है। तृतीय पर्त अन्तः स्तर (Endoderm) कहलाती है जिससे सम्पूर्ण पाचन प्रणाली का निर्माण होता है। फेफड़े, ग्रन्थियों और यकृत (Liver) आदि का निर्माण भी इसी पर्त से होता है।

दूसरे मास के अन्त तक भ्रूण की लम्बाई 1.4  इंच से 2 इंच तक हो जाती है तथा इसका भार लगभग  2/3 औंस हो जाता है। इस अवस्था के भ्रूण को सरलता से पहचाना जा सकता है। शरीर के अंग और भागों का विकास काफी कुछ हो जाता है। सिर का आकार शरीर के अन्य अंगों की अपेक्षा काफी बड़ा होता है। नाक में केवल एक छिद्र होता है। मुँह बिना दाढ़ी (Chin) का होता है। कान और आँखों आदि का विकास प्रारम्भ हो जाता है। इसके हाथ पैर बहुत दुर्बल होते हैं। इसके हड्डियों के स्थान पर Cartilage होती है। हृदय, यकृत और आँतों का विकास होने लगता है। इस अवस्था में गर्भ गिरने के कई कारण हो सकते हैं; जैस- संवेगात्मक आघात, माँ का दुर्बल आहार, ग्रन्थियाँ, असन्तुलन आदि ।

इस कारण से यदि स्वतः गर्भ गिर जाता है, तो उसे स्वतः गर्भपात ( Spontaneous Abortion) कहते हैं। इस अवस्था में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न होने पर भ्रूण में विकासात्मक विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। विकृतियों के उत्पन्न होने का एकमात्र यही कारण प्रतीत होता है कि इसी अवस्था में शरीर के विभिन्न अंगों का निर्माण प्रारम्भ होता है। अतः गर्भित महिलाओं को चाहिए कि वह अपने को धक्का लगने, मानसिक तनाव, दुर्बल आहार, गिरने, झटका लगने और शारीरिक दुर्बलता आदि से अपने आप को बचाएँ ।

3. गर्भस्थ शिशु की अवस्था (The Period of the Fetus) (3 महीने - जन्म तक )

यह तीसरे महीने के प्रारम्भ से और जन्म लेने तक की अवस्था है। यह अवस्था सर्वाधिक लम्बी है। इस अवस्था में शरीर के उन अंगों में वृद्धि होती है; जो इससे पहले की अवस्था में निर्मित हुए थे। तीसरे महीने के अन्त तक गर्भस्थ शिशु का भार 3/4 औंस व लम्बाई 3.5 इंच होती है । पाँचवें महीने के अन्त तक उसका भार 9-10 औंस व लम्बाई 10 इंच तक हो जाती है। आठवें महीने के अन्त तक लम्बाई 16-18 इंच तथा भार 4-5 पाउण्ड तक हो जाता है। दसवें चन्द्र मास के अन्त तक लम्बाई 20 इंच तक तथा भार 7 से 7.5  पाउण्ड तक हो जाता है। इस अवस्था में सिर का विकास भी छठे माह तक तीव्र गति से होता है। सिर तीसरे महीने के अन्त तक सम्पूर्ण शरीर का 1/3 होता है, छठे महीने के अन्त तक सम्पूर्ण शरीर का 1/3 भाग होता है और दसवें चन्द्र मास के अन्त तक इसका आकार इसी प्रकार का रहता है बल्कि यह सम्पूर्ण शरीर का 1/4 से कुछ कम अवश्य हो जाता है । स्पष्ट है कि छठे से दसवें माह तक सिर की अपेक्षा शरीर का विकास बहुत तीव्र गति से होता है। त्वचा सिकुड़ी हुई होती है। इस अवधि के अन्त तक त्वचा लाल हो जाती है। त्वचा पर बाल बहुत मुलायम होते हैं। सातवें से नवें महीने के मध्य धड़ में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। तीसरे महीने तो पैरों की अपेक्षा हाथ अधिक लम्बे होते हैं। चौथे महीने अंगुलियों के पोरों (Toes) का निर्माण और विकास प्रारम्भ हो जाता है।

चौथे महीने के अन्त तक हृदय की धड़कनें सुनी जा सकती हैं। पाँचवें महीने के अन्त तक इस अवस्था के शिशु के आन्तरिक अंग उसी प्रकार से कार्य करने लग जाते हैं, जैसे वयस्क लोगों में। ई. ईखोम (E. Ekholm, 1950) के अनुसार, पाँचवें महीने के अन्त तक थाइमस, थॉयराइड और एड्रीनल ग्रन्थियों में महत्त्वपूर्ण होते हैं। तीसरे महीने के अन्त तक गुर्दे भी अपना कार्य प्रारम्भ कर देते हैं। मार्टिन (P. C. Martin & E.L. Vincent, 1969) के अनुसार, तीसरे महीने में मस्तिष्क में जो विकास होते हैं, उनमें उन क्षेत्र का विकास अधिक तीव्र गति से होता है, जो गत्यात्मक क्रियाओं को नियन्त्रित करते हैं।

इस अवस्था में ज्ञानेन्द्रियों के विकास के सम्बन्ध में सरलता से यह नहीं कहा जा सकता है कि किस ज्ञानेन्द्रियों का विकास किस सीमा तक हो चुका है। आँख का विकास गर्भधारण के दूसरे या तीसरे सप्ताह से प्रारम्भ हो जाता है। लगभग आठ महीने की अवस्था तक रेटिना का प्रबन्ध लगभग उसी प्रकार का हो जाता है जैसे कि वयस्क व्यक्तियों का । सम्पूर्ण गर्भकालीन अवस्था में शिशु आंशिक रूप से बहरा (Deaf) होता है, क्योंकि उसके कान बन्द होते हैं। जन्म के कुछ समय बाद तक भी बालक आंशिक रूप से बहरा होता है। जब उसके कान की Eustachian Tube खुल जाती है और मध्य कान में भरा द्रव्य बाहर निकल जाता है, तब उसे स्पष्ट सुनाई पड़ने लग जाता है। वरनार्ड (J. Bernard & L. W. Sontag, 1947) ने अपने प्रयोगात्मक अध्ययनों में देखा कि माँ के पेट पर यदि एक विशिष्ट प्लेट लगाई जाय और घण्टी की तीव्र ध्वनि की जाय, तो गर्भस्थ शिशु नवें महीने के अन्त में इस प्रकार की ध्वनि के प्रति अनुक्रिया करता है। स्पर्श-संवेदना नाक और मुँह के क्षेत्र में सर्वप्रथम विकसित होती है जो शरीर के अन्य भागों में फैल जाती है। ताप और पीड़ा संवेदना बहुत कम विकसित होती है। गर्म उद्दीपकों के प्रति ठण्डे उद्दीपकों की अपेक्षा गर्भस्थ शिशु शीघ्र अनुक्रिया करता है। इस अवस्था के अन्त तक घ्राणेन्द्रियों का विकास काफी पूर्ण हो जाता है । परन्तु घ्राण संवेदना तब तक सम्भव नहीं है जब तक कि नाक की नली में हवा न भर जाये ।

पाँचवें माह तक गर्भ के गिरने की सम्भावना रहती हैं परन्तु इसके बाद बहुत कम। सामान्यतः सातवें महीने के अन्त तक गर्भस्थ शिशु का शारीरिक, मानसिक और आन्तरिक अंगों का विकास इतना हो जाता है कि यदि इस अवस्था के शिशु का जन्म हो जाये तो वह जीवित रह सकता है। आठवें और नवें महीने में यदि जन्म होता है तो गर्भस्थ शिशु के जीवित रहने के अवसर बढ़ जाते हैं और दसवें महीने में जन्म होने के अवसर सर्वाधिक होते है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- विकास सम्प्रत्यय की व्याख्या कीजिए तथा इसके मुख्य नियमों को समझाइए।
  3. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में अनुदैर्ध्य उपागम का वर्णन कीजिए तथा इसकी उपयोगिता व सीमायें बताइये।
  4. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में प्रतिनिध्यात्मक उपागम का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में निरीक्षण विधि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  6. प्रश्न- व्यक्तित्व इतिहास विधि के गुण व सीमाओं को लिखिए।
  7. प्रश्न- मानव विकास में मनोविज्ञान की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- मानव विकास क्या है?
  9. प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाएँ बताइये।
  10. प्रश्न- मानव विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन की व्यक्ति इतिहास विधि का वर्णन कीजिए
  12. प्रश्न- विकासात्मक अध्ययनों में वैयक्तिक अध्ययन विधि के महत्व पर प्रकाश डालिए?
  13. प्रश्न- चरित्र-लेखन विधि (Biographic method) पर प्रकाश डालिए ।
  14. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में सीक्वेंशियल उपागम की व्याख्या कीजिए ।
  15. प्रश्न- प्रारम्भिक बाल्यावस्था के विकासात्मक संकृत्य पर टिप्पणी लिखिये।
  16. प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी है ? समझाइए ।
  17. प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से है। विस्तार में समझाइए।
  18. प्रश्न- नवजात शिशु अथवा 'नियोनेट' की संवेदनशीलता का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है ? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये ।
  20. प्रश्न- क्रियात्मक विकास की विशेषताओं पर टिप्पणी कीजिए।
  21. प्रश्न- क्रियात्मक विकास का अर्थ एवं बालक के जीवन में इसका महत्व बताइये ।
  22. प्रश्न- संक्षेप में बताइये क्रियात्मक विकास का जीवन में क्या महत्व है ?
  23. प्रश्न- क्रियात्मक विकास को प्रभावित करने वाले तत्व कौन-कौन से है ?
  24. प्रश्न- क्रियात्मक विकास को परिभाषित कीजिए।
  25. प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल के क्या उद्देश्य हैं ?
  26. प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास क्यों महत्वपूर्ण है ?
  27. प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं ?
  28. प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल की कमी का क्या कारण हो सकता है ?
  29. प्रश्न- प्रसवपूर्ण देखभाल बच्चे के पूर्ण अवधि तक पहुँचने के परिणाम को कैसे प्रभावित करती है ?
  30. प्रश्न- प्रसवपूर्ण जाँच के क्या लाभ हैं ?
  31. प्रश्न- विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन हैं ?
  32. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
  33. प्रश्न- शैशवावस्था में (0 से 2 वर्ष तक) शारीरिक विकास एवं क्रियात्मक विकास के मध्य अन्तर्सम्बन्धों की चर्चा कीजिए।
  34. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- शैशवावस्था में बालक में सामाजिक विकास किस प्रकार होता है?
  36. प्रश्न- शिशु के भाषा विकास की विभिन्न अवस्थाओं की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  37. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
  38. प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
  39. प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएँ क्या हैं?
  40. प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
  41. प्रश्न- शैशवावस्था में सामाजिक विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
  42. प्रश्न- सामाजिक विकास से आप क्या समझते है ?
  43. प्रश्न- सामाजिक विकास की अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं ?
  44. प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये ।
  45. प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं? समझाइये |
  47. प्रश्न- संवेगात्मक विकास को समझाइए ।
  48. प्रश्न- बाल्यावस्था के कुछ प्रमुख संवेगों का वर्णन कीजिए।
  49. प्रश्न- बालकों के जीवन में नैतिक विकास का महत्व क्या है? समझाइये |
  50. प्रश्न- नैतिक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से हैं? विस्तार पूर्वक समझाइये?
  51. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास क्या है? बाल्यावस्था में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है?
  53. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
  54. प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें ।
  55. प्रश्न- बाल्यकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
  56. प्रश्न- सामाजिक विकास की विशेषताएँ बताइये।
  57. प्रश्न- संवेगात्मक विकास क्या है?
  58. प्रश्न- संवेग की क्या विशेषताएँ होती है?
  59. प्रश्न- बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास की विशेषताएँ क्या है?
  60. प्रश्न- कोहलबर्ग के नैतिक सिद्धान्त की आलोचना कीजिये।
  61. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?
  62. प्रश्न- बालक के संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
  63. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की विशेषताएँ क्या हैं?
  64. प्रश्न- किशोरावस्था की परिभाषा देते हुये उसकी अवस्थाएँ लिखिए।
  65. प्रश्न- किशोरावस्था में यौन शिक्षा पर एक निबन्ध लिखिये।
  66. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
  67. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है एवं किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का उल्लेख कीजिए?
  68. प्रश्न- किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- नैतिक विकास से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था के दौरान नैतिक विकास की विवेचना कीजिए।
  70. प्रश्न- किशोरवस्था में पहचान विकास से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- किशोरावस्था को तनाव या तूफान की अवस्था क्यों कहा गया है?
  72. प्रश्न- अनुशासन युवाओं के लिए क्यों आवश्यक होता है?
  73. प्रश्न- किशोरावस्था से क्या आशय है?
  74. प्रश्न- किशोरावस्था में परिवर्तन से सम्बन्धित सिद्धान्त कौन-से हैं?
  75. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख सामाजिक समस्याएँ लिखिए।
  76. प्रश्न- आत्म विकास में भूमिका अर्जन की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- स्व-विकास की कोई दो विधियाँ लिखिए।
  78. प्रश्न- किशोरावस्था में पहचान विकास क्या हैं?
  79. प्रश्न- किशोरावस्था पहचान विकास के लिए एक महत्वपूर्ण समय क्यों है ?
  80. प्रश्न- पहचान विकास इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
  81. प्रश्न- एक किशोर के लिए संज्ञानात्मक विकास का क्या महत्व है?
  82. प्रश्न- प्रौढ़ावस्था से आप क्या समझते हैं? प्रौढ़ावस्था में विकासात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- वैवाहिक समायोजन से क्या तात्पर्य है ? विवाह के पश्चात् स्त्री एवं पुरुष को कौन-कौन से मुख्य समायोजन करने पड़ते हैं ?
  84. प्रश्न- एक वयस्क के कैरियर उपलब्धि की प्रक्रिया और इसमें शामिल विभिन्न समायोजन को किस प्रकार व्याख्यायित किया जा सकता है?
  85. प्रश्न- जीवन शैली क्या है? एक वयस्क की जीवन शैली की विविधताओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- 'अभिभावकत्व' से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
  88. प्रश्न- विविधता क्या है ?
  89. प्रश्न- स्वास्थ्य मनोविज्ञान में जीवन शैली क्या है?
  90. प्रश्न- लाइफस्टाइल साइकोलॉजी क्या है ?
  91. प्रश्न- कैरियर नियोजन से आप क्या समझते हैं?
  92. प्रश्न- युवावस्था का मतलब क्या है?
  93. प्रश्न- कैरियर विकास से क्या ताप्पर्य है ?
  94. प्रश्न- मध्यावस्था से आपका क्या अभिप्राय है ? इसकी विभिन्न विशेषताएँ बताइए।
  95. प्रश्न- रजोनिवृत्ति क्या है ? इसका स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं बीमारियों के संबंध में व्याख्या कीजिए।
  96. प्रश्न- मध्य वयस्कता के दौरान होने बाले संज्ञानात्मक विकास को किस प्रकार परिभाषित करेंगे?
  97. प्रश्न- मध्यावस्था से क्या तात्पर्य है ? मध्यावस्था में व्यवसायिक समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- मिडलाइफ क्राइसिस क्या है ? इसके विभिन्न लक्षणों की व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
  100. प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
  101. प्रश्न- मध्य वयस्कता के कारक क्या हैं ?
  102. प्रश्न- मध्य वयस्कता के दौरान कौन-सा संज्ञानात्मक विकास होता है ?
  103. प्रश्न- मध्य वयस्कता में किस भाव का सबसे अधिक ह्रास होता है ?
  104. प्रश्न- मध्यवयस्कता में व्यक्ति की बुद्धि का क्या होता है?
  105. प्रश्न- मध्य प्रौढ़ावस्था को आप किस प्रकार से परिभाषित करेंगे?
  106. प्रश्न- प्रौढ़ावस्था के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष के आधार पर दी गई अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
  107. प्रश्न- मध्यावस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- क्या मध्य वयस्कता के दौरान मानसिक क्षमता कम हो जाती है ?
  109. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60) वर्ष में मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक समायोजन पर संक्षेप में प्रकाश डालिये।
  110. प्रश्न- उत्तर व्यस्कावस्था में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं तथा इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कौन-कौन सी रुकावटें आती हैं?
  111. प्रश्न- पूर्व प्रौढ़ावस्था की प्रमुख विशेषताओं के बारे में लिखिये ।
  112. प्रश्न- वृद्धावस्था में नाड़ी सम्बन्धी योग्यता, मानसिक योग्यता एवं रुचियों के विभिन्न परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
  113. प्रश्न- सेवा निवृत्ति के लिए योजना बनाना क्यों आवश्यक है ? इसके परिणामों की चर्चा कीजिए।
  114. प्रश्न- वृद्धावस्था की विशेषताएँ लिखिए।
  115. प्रश्न- वृद्धावस्था से क्या आशय है ? संक्षेप में लिखिए।
  116. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60 वर्ष) में हृदय रोग की समस्याओं का विवेचन कीजिए।
  117. प्रश्न- वृद्धावस्था में समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार से समझाइए ।
  118. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
  119. प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
  120. प्रश्न- रक्तचाप' पर टिप्पणी लिखिए।
  121. प्रश्न- आत्म अवधारणा की विशेषताएँ क्या हैं ?
  122. प्रश्न- उत्तर प्रौढ़ावस्था के कुशल-क्षेम पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  123. प्रश्न- संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  124. प्रश्न- जीवन प्रत्याशा से आप क्या समझते हैं ?
  125. प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
  126. प्रश्न- वृद्धावस्था में रचनात्मक समायोजन पर टिप्पणी लिखिए।
  127. प्रश्न- अन्तर पीढी सम्बन्धों में तनाव के कारण बताओ।

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